भगवान बुद्ध के जीवन में एक प्रसिद्ध घटना है जब उन्होंने आरंभ में स्त्रियों को संघ (संगठन) में दीक्षा देने से मना कर दिया था। यह घटना महाप्रजापति गौतमी से जुड़ी है, जो बुद्ध की माता महामाया की बहन और उनके जीवन की देखभाल करने वाली थीं। 

       जब भगवान बुद्ध ने अपना धम्म (धर्म) प्रचार शुरू किया और संघ की स्थापना की, तो पुरुषों को दीक्षा देकर उन्हें भिक्षु बनाया। उस समय महिलाएँ भी बुद्ध की शिक्षाओं से प्रभावित होकर संघ में सम्मिलित होना चाहती थीं। महाप्रजापति गौतमी ने कई अन्य महिलाओं के साथ बुद्ध से विनती की कि उन्हें भी संघ में दीक्षा लेने की अनुमति दी जाए।


लेकिन बुद्ध ने तीन बार उनके आग्रह को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यदि स्त्रियों को संघ में स्थान दिया गया, तो धर्म की आयु कम हो जाएगी।


इसके बाद महाप्रजापति गौतमी ने लगभग 500 महिलाओं के साथ सिर मुंडवाकर, पाँव में छाले लेकर, कई मीलों का कठिन सफर तय करके बुद्ध के पीछे यात्रा की और अंततः वे वैशाली पहुँचीं जहाँ बुद्ध ठहरे हुए थे। वहाँ उन्होंने पुनः आग्रह किया।


अनंद (आनंद), जो बुद्ध के प्रमुख शिष्य थे, ने बुद्ध से निवेदन किया कि वे महाप्रजापति गौतमी को दीक्षा दें क्योंकि उन्होंने ही बुद्ध का पालन-पोषण किया था। आनंद के तर्कों और करुणा से प्रभावित होकर अंततः बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में शामिल होने की अनुमति दी, लेकिन कुछ शर्तों के साथ।


यह घटना क्या दर्शाती है:

 इस घटना से बहुत सारी शिक्षा मिलती है लेकिन यह बातें याद रखना कि हम सभी समय सही निर्णय नहीं ले सकते ।

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